Wednesday 15 July 2015

*************** इंतज़ार *****************

रात का आलम ना पूछ एय साकी 
गुज़री पुरी इश्क और इंतज़ार ए साथी में 
चांद उतरता गया मेरे चेहरे जैसा 
में ढूंढता रहा तुझे बेकरार जैसा 
कभी इस करवट ढूंढl कभी उस करवट 
पर तु कहीं नही था मेरे हम्नावा जैसा 
हम नही समझते क्या गलत क्या सही 
पर सही करना सीखना है ज़िंदगी जैसा 
कभी हँसाय कभी रुलाय ये ज़िंदगी किस मोड़ पर है लेई ज़िंदगी 
पर अब तो लगता है ये सिलसिला खत्म हीगा मौत जैसा

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